
राधा की रास स्वप्न
यमुना की धारा में देखे खुद की तस्वीर,
व्याकुल मन की दिखी अधीर लकीर।
हटा लिया चेहरा पानी से,
चंचल मन को खुद ही कोसे।
‘न करता वो मुझ से प्रेम,
करके वादा झूमे वो गोपियों संग।’
सखी सखी बोल के सब को मन लुभाए
न सुनी मेरी पुकार, कान्हा बड़ा सताए।
‘न करुँगी आज उस से बात,
रूठी हूं अब न करुँ इंतज़ार।’
बोली राधा यमुना से,
चली मन को करके उदास।
शाम ढलने को आया गहन वन में सुनी इक धुन,
रोका खुदको अनचाह पर बह चली श्यामला के मन।
मोहित हो बनाया बंसी को आधार,
फंसा खुद को न समझी कृष्ण का मायाजाल।
विचलित मन लौटा स्वप्न की मोह से,
दिखी कान्हा की छल हंसी रूठी वो जाके फिर से।
रोष तो था मन में पर प्रेम भी उमड़ा,
छलिया का छल भारी राधे पर पड़ा।
बंसी की धुन में न रुके घुंघरू,
हुई जब कान्हा के रू-ब-रू।
लग गले समा दिया खुद को माया में,
छोड़ राग रोष रंगी श्याम की काया में।
नजरे हटी यमुना की धारा से,
पाया खुद को बाहर कल्पना से।
न था कोई श्याम न थी कोई माया,
फैला रहता दिन भर दुःख का साया।
आँसू अब इंतज़ार में सूख गए,
दिल अब भी उम्मीद में है खोए।
राधे का श्याम लौटेगा यमुना पार से,