Micro Tale

नवम्बर की एक शाम
दिन भर की थकान के बाद सूरज अब विदा हो रहा था। मैं खिड़की से बाहर झांकते हुए सूरज की विदाई कर रही थीं। हाथ में चाय का प्याला था। दिन भर तप कर सूरज शीतल हो चुका था। सूरज की शीतलता और चाय की गरमाहट को मैं सहज महसूस कर ही रही थी कि तुम्हारी याद आ गई। मन बेचैन था, ऑंखें नम थी, ये शाम भी कुछ बेरहम थी। चाय की चुस्कियों के साथ मैं तेरी यादों की गलियों से गुजर ही रही थी। कि एक पुराना गाना जुबान पर आ गया।
उस गाने को गुनगुनाते हुए तुम्हारी यादों की गलियों से बहुत आगे निकलती जा रही थी, निकलती ही जा रही थी। तभी दरवाजे पर आवाज आई, दूधध……..। उस आवाज ने मुझे फिर से वो खूबसूरत गलियों से पुरानी दिल्ली के एक छोटे से मोहल्ले के एक छोटे से घर के छोटे से कमरे में वापस खींच कर ले आई।
और फिर क्या ? अगली सुबह भी तो मुझे चाय बनानी थी। फिर से चाय के साथ तेरी यादों में भी खोना था। तो मैंने झट से यादों को साइड किया और दूध का बर्तन लिये दरवाजा खोला।
4
4 thoughts on “नवम्बर की एक शाम”
Leave a Reply
You must be logged in to post a comment.
Wowww ❤❤❤❤
मैं जरूर बनाऊंगा इसे
मैं जरूर बनाऊंगा इसे
मैं जरूर बनाऊंगा इसे